राजी एक ऐसी फिल्म जो बताती है “देश के आगे कुछ भी नहीं, खुद भी नहीं”
मेघना गुलजार की फिल्म राजी सभी दर्शकों
के लिए एक सौगात है क्योंकि ये आपको 2 घंटे 20 मिनट में देश के लिए सोचने पर मजबूर
कर देगी। खास कर उन लोगों को जिन्हें सिनेमा हाल में राष्ट्रगान बजने पर खड़े होने
पर भी तकलीफ होती है। दरअसल मेघना गुलजार की फिल्म राजी एक मुखबिर के जीवन के उस दर्द
को काफी करीब से महसूस कराती है जिससे वो हर लम्हा लड़ता रहता है। देश के लिए पराए
मुल्क में जान पर खेलकर कैसे अपनों के साथ पराया बनकर रहता है। मेघना गुलजार ने बड़ी
बखूबी से देश के लिए कुर्बान होने के लिए तैयार 20 साल की लड़की के पराए मुल्क में
जाकर मुखबिर बनने की कहानी को बड़े परदे पर उतारा है। राजी फिल्म की खासियत यही है
कि इसमें राष्ट्रभक्ति का कोई ढिंढोरा नहीं है। बस ये जुनून है कि देश के आगे कुछ
भी नहीं, खुद
भी नहीं ।
दरअसल फिल्म की कहानी हरिंदर सिक्का के
उपन्यास कॉलिंग सहमत पर बेस्ड है। फिल्म की कहानी 1971 के दौरान भारत- पाक के बीच
तनावपूर्ण माहौल को दिखाती है,
जो बाद में युद्ध के माहौल में तब्दील हो जाती है। पाकिस्तान भारत को तबाह करने के
लिए क्या ताने-बाने बुन रहा है इस बात की खबर देने का काम करती है 20 साल की लड़की
सहमत ( आलिया भट्ट) जो बहुत नाजुक है। गिलहरी से प्यार करती है, सुई लगवाने से उसे डर लगता
है। जिसने अभी कॉलेज तक पूरा नहीं किया है, दुनिया नहीं देखी, मां- बाप के सिवाय किसी
रिश्ते को नहीं समझा। वो मासूम सी लड़की अपने पिता के कहने पर सरहद पार जाकर दो लोगों
का खून तक करती है। वतन के लिए परेशान पिता (रजित कपूर) के लिए सहमत पाकिस्तान आर्मी
के ब्रिगेडियर के छोटे बेटे से शादी करने के लिए राजी हो जाती है। उसे पाकिस्तान
में भारत की आंख- कान बनकर रहने के लिए ट्रेन किया जाता है। वो एक दुश्मन मुल्क
में अपने ससुराल और पति के दिल में जगह बनाते हुए पाकिस्तान आर्मी में चल रहे षड़्यंत्र
की जानकारी भारत तक पहुंचाने में सफल हो जाती है। इस दौरान सहमत और उसके पति इकबाल
(विकी कौशल) के बीच छोटी से प्रेम कहानी भी पनपती है। मगर इस बीच सहमत के मुखबिर
होने के खबर घरवालों को लग जाती है। जिसके चलते सहमत को ना चाहते हुए भी अपने हाथ खून
से रंगने पड़ते हैं। आखिर में अपने पति इकबाल को अपनी आंखों के सामने बम से उड़ते
हुए देख अपराध बोध से भर जाती है।
एक्टिंग की बात की जाए तो आलिया के लिए
तालियां तो बनती है। वैसे भी आलिया ने साबित कर दिया है कि वो एक बेहतरीन अदाकार है।
चाहे फिल्म हाईवे की बात की जाए या फिर फिल्म उड़ता पंजाब की। साथ ही पाकिस्तान
आर्मी ऑफिसर और शांत पति के तौर पर विकी कौशल लाजवाब लगे हैं। रॉ एजेंट की भूमिका
में जयदीप अहलावत का काम बेहतरीन है। रजित कपूर, शिशिर शर्मा, आरिफ जकारिया ने अपने- अपने
किरदार को बखूबी निभाया है,
जबकि आलिया की मां के किरदार में सोनी राजदान के सीन बहुत कम हैं। मेघना गुलजार के
निर्देशन की तारीफ करनी पड़ेगी कि राष्ट्रभक्ति से भरी फिल्म को उबाऊ और पारंपरिक
नहीं बनाया है। फिल्म में गीत की बात की जाए तो दिलबरो गाना बेहद ही खूबसूरत है। जो
आपके दिल को छू जाएगा,
ये गीत विदाई के समय एक बाप- बेटी के इमोशन को दिखाता है। वहीं ऐ वतन आपको अपने वतन
से प्यार के एहसास से भर देगा। गुलजार साहब के लिखे गीतों को अरिजीत सिंह ने मानो अपनी
आवाज से जान दे दी हो। गीत
“ऐ वतन”
में वो जादू है कि आप सिनेमा हॉल से निकलते हुए “
ऐ वतन ” गुनगुनाते
हुए बाहर निकलेंगे।


Waese to phle se man that ki ye movie hall me ja kr dekhni h aur zrur dekhne hai. Ab aapka review padhne ke Baad film dekhne ki palak aur bash gyi h. Mashrufiyat ki wjh se ab haal to nhi ja skte pr laptop me to dekh hi skte h.
ReplyDelete