पूरी रात प्रद्युम्न का चेहरा आंखों के सामने आता रहा
प्रद्युम्न की वो तस्वीर, उसका मासूम सा चेहरा पूरी
रात भूले नहीं भुलाया गया और उसके अस्पताल के वक्त की वो तस्वीर, उफ्फ !
मत पूछिए झकझोर कर रख दिया। तीन दिन की छुट्टी के बाद मैं ऑफिस पहुंची और पहला सामना
प्रद्युम्न की खबर से हुआ, पूरे दिन खबर के तौर
पर खबर चलती रही मगर दिल में बेचैनी बनी रही, मैं पूरी रात सोचती रही कि आखिर
क्यों इस बच्चे को इस बेदर्दी से मारा गया ? आखिर क्या कसूर था
उसका ? क्या किसी रंजिश की कीमत उसे चुकानी पड़ी ? या समाज की काली सोच ने उस मासूम की जान ले ली ?
गुरुग्राम के रेयान इंटरनेशनल में जो 8 सितंबर को हुआ वो एक ऐसा सच है
जो अभी तक का सबसे खतरनाक और चिंताजनक सच है। यह एक ऐसी घटना है जिससे सिर्फ हर घर
के मां- बाप ही नहीं बल्कि मेरे जैसे अविवाहित भी चिन्तित हैं । यकीन जानिए ये खबर
सबको झकझोर देने वाली है। हालांकि हम सबका दुख प्रद्युम्न
के मां-बाप की तकलीफ के आगे कुछ नहीं है, हम उनकी तड़प की कल्पना भी
नहीं कर सकते जिसने बड़े अरमानों से अपने कलेजे के टुकड़े को स्कूल भेजा था, उसको उस सुबह उन्हीं हाथों से प्यार, दुलार किया था जिन
हाथों से वो आज उसकी लाश उठा रहे हैं । लोग कहते हैं कल्पना कीजिए उनके दुख की. नहीं,
मैं नहीं कर सकती उस मां-बाप की तकलीफ़ की कल्पना. कोई नहीं कर
सकता. चाहे वो चैनल वाले हो, अखबार वाले हो और या फिर समाज सुधारक हों।
इन सब बातों के बीच एक बात जो मेरे जेहन में आई कि क्या वाकई हम इस
कम्प्यूटरीकरण, फ़ेसबुक, व्हॉट्स ऐप ऐसी चीजों के जाल में फंस गए हैं, इन
साधनों ने हमारे अंदर का इंसान मार दिया है। ये कौन सा दौर है जो बड़े तो बड़े , बच्चे
खुले में सांस नहीं ले सकते, आखिर क्यों इंसानियत, हमदर्दी
समाज से गायब सी हो गई है। वो दुनिया जिसमें रिश्तों से ज़रूरी मोबाइल फ़ोन बन गए
हैं, वो दुनिया जो मॉल से शुरू होती हैं और सेल्फ़ी पर जाकर
ख़त्म हो जाती है। फ़ेसबुक, व्हॉट्स ऐप ने हमारी संवेदनाओं को
यूं धीरे- धीरे मार दिया है कि हमें उसका अंतिम संस्कार करने तक की भी जरूरत महसूस
नहीं हुई। आज इस विषय पर रिसर्च करते हुए 15 घटनाएं मेरे आंखों के सामने से गुजरी
जिसमें बच्चों के साथ स्कूल में यौन शोषण हुआ...आखिर क्यों अब हमारे बच्चे डरे हुए
हैं, असुरक्षित हैं, मां- बाप को अपने बच्चे के घर वापस आने तक चिंता लगी रहती
है..मुझे याद है वो दौर जब हम लोग घर से मांजी( मेरी दादी) को बोल कर खेलने
मुहल्ले में निकल जाते थे। मैं लड़की होकर भी बिना डरे लड़कों के साथ क्रिकेट,
बैंडमिंटन खेल लिया करती थी, मेरे भाई का तो मत ही पूछिए वो सिर्फ दूर से ही आवाज
लगाकर रफ़्फूचक्कर हो जाता था लेकिन पड़ोसी से भी पूछ लो तो बता दें कि हम कहां
खेल रहे हैं मगर दुर्भाग्यवश आज लोगों को अपने पड़ोस के घर में रह रहे लोगों का
पता नहीं होता।सब भागती दौड़ती जिंदगी में स्वार्थी हो गए हैं, संवदेनाएं मर गई
है, वहशीपन लोगों के जहन में समा गया है।
प्रद्युम्न के साथ जो हुआ उसकी वजह … हमारा बर्ताव, रवैया, सोच है। कुछ
तथ्यों पर नजर डालते हैं जिससे तस्वीर और साफ हो जाएगी, बच्चों के शोषण के मामले भारत में तेजी से बढ़ रहे हैं. नेशनल क्राइम
रेकॉर्ड ब्यूरो की माने तो देश में 53% बच्चे चाइल्ड एब्यूज का शिकार होते हैं। कई
बार हम सोचने लगते हैं कि बच्चों के साथ कोई क्या करेगा, ये सोचना हमें छोड़ना
पड़ेगा, क्योंकि इसी बात का कुछ लोग गलत फायदा उठाते हैं। बच्चों की मासूमियत को
अपनी हवस का शिकार बनाते हैं , माना जाता है कि चाइल्ड एब्यूज की घटनाएं लड़कियों
के साथ ज्यादा होती हैं. इसीलिए लड़कों पर साधारणता हम लोग ध्यान नहीं देते, जबकि
ऐसा नहीं है वो भी लड़कियों के बराबर ही दरिंदों के निशाने पर हैं. यूनिसेफ की
रिपोर्ट के मुताबिक जिन बच्चों के साथ यौन शोषण के मामले सामने आए, उनमें से 54.68 % पीड़ित लड़के
थे। इन सबके बीच स्कूल को भी ये समझना होगा कि उनके ऊपर बड़ी जिम्मेदारी है उस
बच्चे की जिसके मां- बाप अपने
जिगर के टुकड़े को आपको 6-7 घंटे के लिए सौंप रहे हैं ।



आपके लेख से आपकी संवेदना साफ झलक रही है। आज के वर्तमान समाज का चित्रण करते हुये ये लेख सरकार और प्रशासन पर प्रश्न खड़ा करता है। जिम्मेदारी से हर कोई अपना पिछा छुड़ाता दिख रहा है। यह लेख पढ़कर ह्रदय करुणा से द्रवित हो गया। आप ऐसे ही लेख लिखती रहिये
ReplyDeleteशुक्रिया हौसला बढ़ाने के लिए
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