अक्टूबर: ये प्रेम कहानी नहीं, ये कहानी है प्रेम की
निर्देशक: शूजीत सिरकार
लेखक: जूही चतुर्वेदी
कलाकार: वरुण धवन, बनिता संधू , गीतांजलि राव, प्रतीक कपूर
रेटिंग: 3/5
अगर किसी को प्यार का प्रमाण चाहिए तो एक साक्ष्य है फिल्म अक्टूबर। जी हां आपने कई लोगों को एक-दूसरे से तहे-दिल से महोब्बत करने का दावा करते देखा होगा मगर मेरा दावा है कि उनमें से कुछ ही लोगों ने प्यार में त्याग के भाव को समझा होगा। क्योंकि प्यार एक ऐसा शब्द है जिसे समझना मुश्किल है, इसे सिर्फ महसूस किया जा सकता है। कुछ ऐसी ही कहानी है फिल्म अक्टूबर की, जिसे समझा नहीं, महसूस किया जा सकता है। ये फिल्म प्यार की ऐसी दास्तान बयां करती है जिसमें शब्दों का नहीं खामोशी का इस्तेमाल किया गया है। ये फिल्म उन लोगों को जरुर पसंद आएगी जिन्होंने कभी किसी को खामोशी से प्यार किया होगा। विकी डोनर, पीकू और पिंक जैसी बेहतरीन फिल्म बनाने वाले शूजीत सिरकार की अक्टूबर एक अनकहे प्यार की दास्तान है। फिल्म को समझने के लिए शुरु में आपको धैर्य रखना पड़ेगा। शुरुआत धीमी होती है। मगर धीरे- धीरे फिल्म अपनी रफ्तार पकड़ती है।
कहानी: इस फिल्म की कहानी की शुरुआत वरुण धवन से होती है। जिसका नाम डैन होता है। वो एक फाइव स्टार होटल में इंटर्न होता है। जो एक शरारती बच्चे की तरह किसी का कहना नहीं मानता और बार- बार उसको चेतावनियों का सामना करना पड़ता है वहीं बनिता संधू (शिउली) बेहद ही समझदार इंटर्न के तौर पर काम करती है। कई सीन् में शिउली को चुपके-चुपके डैन को देखते हुए दिखाया गया है। फिल्म का टर्निंग पॉइंट ये सीन है जहां जहां होटल का स्टाफ न्यू ईयर की पार्टी करता है, वहां शिउली 30 फीट ऊपर से नीचे गिर जाती है और कोमा में चली जाती है। कोमा में जाने से पहले पूछे गए शिवली के शब्द “व्हेयर इज डैन” ने डैन की जिंदगी बदल देता है। डैन पूरी फिल्म के दौरान ये पूछता रहा है कि आखिर शिउली ने क्यों पूछा था व्हेयर इज डैन। इन सबके बीच वरुण ने बिना नाम के प्यार को महसूस किया और फिर क्या था अपने कैरियर, परिवार की परवाह किए बगैर वो सिर्फ शिउली को सही होते देखना चाहता है। फिल्म में शुजीत सिरकार ने आज की दुनिया के मतलबी चेहरे से भी वाकिफ कराया है। जहां आपको पता चलेगा कि वाकई दुनिया प्रैक्टिकल है। वो पहले अपना फायदा देखती है। फिल्म में खामोशी भरे प्यार का एहसास है तो उस परिवार का दर्द भी है जो आपनी आंखों के सामने अपनी बेटी को मरते देखता है।
एक्टिंग : फिल्म में कलाकारों की एक्टिंग की बात की जाए तो वरुण धवन के लिए एक माइलस्टोन साबित होगी। वरुण ने अपनी पुरानी कॉमेडी, एक्शन हीरो की इमेज को तोड़ा है। वहीं बनिता संधू की ये पहली फिल्म है। इस फिल्म में उनका सिर्फ एक डॉयलाग है मगर उन्होंने अपनी आंखों के साथ खामोशी से बेहतरीन अदाकारी की है। इस फिल्म में आपको महसूस होगा कि फिल्म के किरदार आपके करीब ही है। शूजीत सिरकार की ये फिल्म कमशिर्यल फिल्म जैसी नहीं है। फिल्म की मजबूत कड़ी फिल्म की खूबसूरत सिनेटोग्राफी और सधी हुई एडिटिंग है। वहीं फिल्म को उसका पेस कमजोर बनाता है। किरदारों को समझाने में लगने वाला वक्त दर्शकों के धैर्य की परीक्षा लेता है। वहीं डैन का शिउली से अचानक इस कदर लगाव को पचा पाना भी थोड़ा मुश्किल लगता है और पूरी फिल्म में ये जवाब नहीं मिलता कि आखिर क्यों शिउली ने पूछा था “व्हेयर इज डैन”।
फिल्म का एक अहम हिस्सा है हरसिंगार का फूल। जिसका समयकाल क्षणिक होता है। हरसिंगार के पेड़ में रात में खुशबूदार छोटे- छोटे फूल आते हैं और सुबह खुद-ब-खुद जमीन पर गिर जाते हैं। शायद जूही चतुर्वेदी ने इस फूल के माध्यम से जीवन की परिभाषा समझाने की कोशिश की है। शिउली की मां बताती है शिउली को हर साल अक्टूबर महीने का इंतजार रहता था क्योंकि इस महीने में ही हरसिंगार के फूल खिलते हैं। शिउली को ये फूल बहुत पसंद था। शिउली ने हरसिंगार का पेड़ भी लगाया था जिसको फिल्म के आखिर में डैन अपने साथ ले जाता है। कुल मिलाकर जिन्हें धीमी मगर मिनिंगफुल सिनेमा पसंद है ये फिल्म उनके लिए है। आखिर में शूजीत सिरकार की “अक्टूबर” के लिए फिल्म “खामोशी” का गाना “ सिर्फ एहसास है ये रूह से महसूस करो, प्यार को प्यार ही रहने दो कोई नाम ना दो” एकदम सटीक बैठता है। ये फिल्म आपको सोचने पर मजबूर कर देगी कि ऐसी प्रेम कहानी के साथ जीना कैसा होता होगा ?


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