राजपूताना इमेज का ओवर डोज है फिल्म पद्मावत
निर्देशक : संजय लीला भंसाली
कलाकार : दीपिका पादुकोण, रणवीर सिंह, शाहिद कपूर, जिम सरभ, अदिति राव हैदरी, रजा मुराद, अनुप्रिया गोयनका
क्यों देखें 'पद्मावत'- इतने विवाद के
बाद ये जानने के लिए कि फिल्म में कुछ विवादित है भी या नहीं साथ ही अगर रणवीर
सिंह की एक्टिंग के फैन हैं तो ये फिल्म आपको जरुर देखनी चाहिए, भंसाली के भव्य
सेट डिजाइन और बेहतरीन सिनेमेटोग्राफी के लिए साथ ही बेहतरीन डॉयलाग के
लिए और 3D
इफेक्ट्स का मजा
लेने के लिये इस फिल्म को देखना बनता है।
क्यों न देखें 'पद्मावत'- फिल्म देखने से
पहले अगर जबरदस्ती का राजपूताना खून उबाल मार रहा है तो क्योंकि आखिर में निराशा
ही हाथ लगेगी, पूरी फिल्म राजपूतों की जय- जय ही करती है और अगर भंसाली की महत्वकांक्षी
फिल्म से कुछ अलग की उम्मीद है तो ये फिल्म आपके लिए नहीं है, फिल्म की लंबाई और
ढ़ीली पटकथा आपको निराश करेगी, कहीं- कहीं फिल्म के कुछ सीन्स आपको अटपटे लगेंगे
और हो भी क्यों ना इतनी काट-छांट के बाद तो फिल्म परदे तक आ सकी है। इतना ही नहीं इतिहास
में कल्पना का मिक्सर थोड़ा पचाना मुश्किल होगा, राजपूताना आन-बान शान के बखान को सुनने
में दिलचस्पी ना हो तो ये फिल्म आपको नहीं देखनी चाहिए।
रेटिंग : 3/5
फिल्म पद्मावत की रिलीज से पहले हुए बवाल से मन में सुरक्षा की शंका लिए आखिर
मैं फिल्म देखने सिनेमा हॉल पहुंच ही गई, क्योंकि खून तो आखिर
राजपूत का ही था तो डर से क्या डरना था, वहां पहुंचकर सिनेमा हॉल के बाहर और अंदर
पुलिस बल की तगड़ी तैनाती देख कर बड़ी तसल्ली हुई। खैर, ये तो बात रही पहली
बार पहरे में फिल्म देखने के मेरे पहले अनुभव की अब बात करते हैं संजय लीला भंसाली
की अब तक की सबसे भसड़ भरी फिल्म पद्मावत की । फिल्म पद्मावत की शुरूआत एक के बाद
एक डिस्केलमर के साथ होती है, पहला डिस्क्लेमर बताता है कि यह फिल्म मलिक
मोहम्मद जायसी के महाकाव्य पद्मावत पर बनी है और ऐतिहासिक रूप से सही होने का दावा
नहीं करती, उसके बाद के डिस्क्लेमर में शूटिंग के दौरान पशु-पक्षियों को हानि न
पहुंचाने,
किसी की भावनाएं आहत
न करने और जौहर प्रथा का समर्थन न करने की बात कही जाती है। यानी कि पहले डेढ़
मिनट आप डिस्क्लेमर ही देखते रहेंगे और फिल्म के आखिर में राजपूताना आन, बान और शान का
लंबा चौड़ा बखान सुनने को मिलता है।
फिल्म की कहानी तो किसी को अब बताने की जरुरत नहीं है क्योंकि इतने बवाल
के बाद जिसने इतिहास नहीं भी पढ़ा है वो भी इस कहानी के हर किरदार से वाकिफ हो चुका
है फिर भी बता दें कि रणवीर सिंह सनकी सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी के रोल में हैं, फिल्म में रणवीर
सिंह की एक्टिंग को कोई तोड़ नहीं हैं, रणवीर सिंह ने खिलजी को इस कदर अपने अंदर
समा लिया है कि आपको रणवीर सिंह को देख कर खिलजी से नफरत हो जाएगी, मुझे तो नफरत से
ज्यादा बदबू और गंदगी का एहसास हो रहा था। खिलजी का नॉनवेज खाने वाला शॉट आपको घिन
से भर देगा और उसके वहशीपन का अंदाजा उसके परफ्यूम लगाने वाले शॉट से चलता है। वहीं
दीपिका पादुकोण रानी पद्मावती के किरदार में बेहद खूबसूरत लग रही हैं। इस फिल्म में
उनकी आंखें शब्दों से ज्यादा बोलती हैं फिर भी मुझे लगता है कि जितनी ग्रेसफुल वो
लग सकती थी उतनी नहीं लग रही हैं, और अगर डायलॉग डिलीवरी की बात करें तो दीपिका
कहीं- कहीं पर ट्रैक से हटती हुई दिखती हैं वो राजस्थानी टोन को सही से नहीं पकड़
पा रही हैं। ऐसा ही कुछ रावल रतन सिंह बने शाहिद कपूर के साथ है, वे अपने डायलॉग
बोलने में तो कमाल करते हैं, लेकिन उनके चेहरे की मासूमियत और कद उनको खिलजी के
सामने फीका बनाता है। जलालुद्दीन खिलजी की छोटी सी भूमिका में रजा मुराद आपको याद
रह जाते हैं। अदिति राव हैदरी खिलजी की पत्नी के तौर पर बेहतर कर रही हैं और फिल्म
का एक और अहम किरदार है मलिक काफूर जिसको जिम सरभ ने बहुत बढ़िया तरीके से निभाया
है उसका सुल्तान को सुल्तैन कहना और अफगानी अंदाज में बोलना मजेदार है। फिल्म का
नाम जरुर पद्मावत है मगर फिल्म का असली हीरो खिलजी ही है।
फिल्म में बेहतरीन डॉयलाग हैं, हर डायलॉग में राजपूत गौरव झलकता है । जैसे
एक जगह रानी पद्मावती कहती है 'राजपूती कंगन में उतनी ही ताकत है जितनी
राजपूती तलवार में.. और शाहिद कपूर का चिंता को तलवार की नोक पे रखे, वो राजपूत...रेत की
नाव लेकर समुंदर से शर्त लगाए, वो राजपूत, और जिसका सर कटे
फिर भी धड़ दुश्मन से लड़ता रहे, वो राजपूत. हर राजपूत को गर्व के एहसास से भर देगा। वहीं
फिल्म में कुछ सीन जबरदस्त हैं जैसे जौहर वाला सीन आपके जेहन में गहरा समा जाएगा ।
उससे उबरने में आपको कुछ मिनट का वक्त लगेगा।
बहरहाल, फिल्म के सेकेंड हॉफ में रानी पद्मावती की
राजनीतिक समझ बूझ को दिखाते हुए कहानी को आगे बढ़ाया गया है। कई जगह यह भी दिखाया
गया है कि महारानी कितनी बुद्धिमान थीं। सुंदरता और बुद्धि का बेमिसाल मेल भी कह
सकते हैं रानी पद्ममावती को। बेशक भंसाली की ये फिल्म उनके जाने माने अंदाज की तरह
ही भव्य है फिर भी थ्रीडी के प्रभावशाली इफेक्ट्स के साथ देखने पर भी ये कुछ चूक
जाने का एहसास दिलाती है।
चलते- चलते मैं ये कह सकती हूं कि एक ओछी राजनीति के चलते एक बेहतरीन
फिल्म ने अपनी आत्मा खो दी। ना जाने राजपूतों के ठेकेदार बने करनी सेना को ये
मासिच किसने लगाई ? चुनाव के चक्कर
में एक फिल्म भी राजनीति का शिकार होने से नहीं बच पाई
वैसे जो भी हुआ हो इस फिल्म से फायदा तो दोनों को ही हुआ है करनी सेना को
पहचान मिल गई और फिल्म को पब्लिसिटी। हालांकि फिल्म देखते हुए आपको इस बात पर यकीन
हो जाता है कि राजपूत तब भी समझदारी से काम नहीं ले रहे थे और अब भी। फिल्म से
राजपूतों को समझना चाहिए कि उसूलों के साथ बुद्धि का इस्तेमाल हर वक्त की जरुरत
रही है। इसलिए फिजूल की बातें साइड में रखिए और फिल्म देख आइए।



जितना फ़िल्म देख कर मज़ा नहीं आया उससे कहीं। ज्यादा आपका रिव्यू पढ़ कर मज़ा आया। क्योंकि फ़िल्म हमने भी देखी है लिहाजा हम ये कह सकते हैं कि आपने बहुत बेहतरीन तरीके से फिल्म के हर पहलू और उससे बाहर हो रही भसड़ को समझाया है। हमने करीब करीब आपकी हर स्क्रिप्ट,हर रिव्यू पढ़ा है और करीब 3 साल आपके साथ एक प्रोफाइल पर काम किया है जबकि वैसे 5 साल से आपके काम को देखते आ रहे है। उस आधार पर हम ये कह सकते हैं कि ये आपकी अब तक कि सबसे बेहतरीन लेखनी थी।
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