ममता दीदी..तेरी ये जिद्द ले डूबेगी !

बंगाल की शेरनी के नाम से जानी जाने वाली ममता बनर्जी सत्ता सुख के लिए इस कदर उतावली हो गई हैं कि अब उन पर ना कोर्ट की फटकार का असर हो रहा है ना जनता के विरोध का। आप कह सकते हैं कि सत्ता की चाह ने दीदी को अंधा कर दिया है मगर क्या वोट के लालच में किसी राजनेता का इस तरह व्यवहार करना ठीक है ? सत्ता की जिस चाहत के चलते वो बंगाल की विलेन बनती जा रही हैं कहीं वही चाहत उनके पतन का कारण ना बन जाए ? वैसे कहा भी जाता है कि विनाश काले विपरीत बुद्दि”, तो कहीं दीदी के ये कर्म उनके विनाश काल की ओर तो नहीं बढ़ रहे हैं ? दीदी को इस बार भी कोर्ट से उसी जिद्द पर फटकार लगी हैं जिस पर पिछले साल कोर्ट ने कहा था कि ये फैसला साफतौर पर एक समुदाय विशेष को खुश करने के लिए लिया गया है ममता बनर्जी की नज़र पश्चिम बंगाल के उन 30 फ़ीसदी मुसलमानों पर है मगर ऐसा करते वक़्त वो शायद उस 70 फीसदी आबादी को भूल गई हैं जो कि बहुसंख्यक है।

चलिए अब आपको दीदी की उन संभावित पांच बड़ी गलतियों के बारे में बताते हैं जो आने वाले समय में उनको सत्ता की गद्दी से दूर कर सकती है ....

दुर्गा मूर्ति विसर्जन पर पाबंदी
बंगाल को खास तौर पर दुर्गा पूजा की रौनक के लिए देशभर में जाना 
जाता है मगर दुर्भाग्य देखिए बंगाल की मुखिया ने दुर्गा प्रतिमा विसर्जन पर पाबंदी लगाने का फरमान दे दिया, ममता सरकार का कहना है कि इस बार दुर्गा पूजा और मुहर्रम एक ही दिन 1 अक्टूबर को पड़ रहे ऐसे में मुहर्रम के दिन को छोड़कर 2, 3 और 4 अक्टूबर को दुर्गा प्रतिमा का विसर्जन किया जा सकता है, जिस पर कलकत्ता कोर्ट ने ममता को फटकार भी लगाई, कलकत्ता हाइकोर्ट ने राज्य की ममता सरकार के खिलाफ सख्त टिप्पणी की, कोर्ट ने कहा कि आप दो समुदायों के बीच दरार क्यों पैदा कर रहे हैं?, दुर्गा पूजा और मुहर्रम को लेकर राज्य में कभी ऐसी स्थिति नहीं बनी है उन्हें साथ रहने दीजिए..सवाल ये है कि क्या किसी और राज्य में एक साथ हिंदू – मुस्लिम उत्सव नहीं मनाते


रामनवमी की पूजा के लिए परमिशन नहीं दी
22 मार्च को लेक टाउन रामनवमी पूजा समितिने पूजा के लिए परमिशन मांगी तो राज्य सरकार के दबाव में नगरपालिका ने परमिशन नहीं दीं, वहीं दशहरे के दिन राज्य में शस्त्र पूजा पर रोक लगा दी है। ममता सरकार का कहना है कि आरएसएस और दूसरे हिंदू संगठन वोटों के ध्रुवीकरण की कोशिश कर रहे हैं जिसे देखते हुए शस्त्र पूजा की इजाजत नहीं दी जा सकती।

चार साल से कांगलापहाड़ी में नहीं हुई दुर्गा पूजा
10 अक्टूबर, 2016 को कलकत्ता हाईकोर्ट के आदेश से ये बात साबित होती है। ममता बनर्जी के राज में बीरभूम जिले का कांगलापहाड़ी गांव है, गांव में 300 घर हिंदुओं के हैं और 25 परिवार मुसलमानों के हैं, लेकिन इस गांव में चार साल से दुर्गा पूजा पर पाबंदी है। वहीं ममता ने 288 साल पुराने तारकेश्वर मंदिर की देखरेख के लिए बनाए गए तारकेश्वर डेवलपमेंट बोर्ड की कमान भी एक मुस्लिम मंत्री के हाथों में सौप दी.


ममता सरकार ने बदला राम का नाम

रामधनु को रंगधनु किया, तीसरी क्लास में पढ़ाई जाने वाली किताब अमादेर पोरिबेस (हमारी 

परिवेश) “रामधनु का नाम बदल दिया गया उसे रंगधनु कर दिया गया साथ ही ब्लू का मतलब

आसमानी रंग बताया गया है। , लेकिन अब एक समुदाय विशेष को खुश करने के लिए किताब में 

इसका नाम रामधनुसे बदलकर रंगधनुकर दिया है।



सरकारी लाइब्रेरी में नबी दिवस-ईद मनाना जरूरी कर दिया

11 जनवरी 2017 को ममता सरकार ने आदेश जारी किया कि नबी दिवस सरकारी लाइब्रेरी में भी
मनाया जाएगा। बंगाल सरकार के इस नए नियम के हिसाब से राज्य की सभी 2480 से ज्यादा
सरकारी लाइब्रेरी में साल के दूसरे प्रस्तावित कार्यक्रम की तरह नबी दिवस मानने की भी बात कही
गई। इतना ही नहीं इसे मनाने के लिए सरकारी खजाने से फंड देने की भी व्यवस्था की गई।
इन सब के साथ एक तथ्य भी खासा चौंकाने वाला है कि ममता राज में हिंदुओं की संख्या लगातार घटती जा रही है 

पश्चिम बंगाल में 1951 की जनसंख्या के हिसाब से 2011 में हिंदुओं की जनसंख्या में भारी कमी 
आई है। 1951 में हिंदुओं की जनसंख्या जहां 78.54 % थी तो वहीं 2011 की जनगणना के 
मुताबिक 70.50 % पहुंच गई है तो वहीं मुस्लिमों की आबादी की बात करें तो 1951 में जहां 
18.63% थी तो वहीं 2011 में 27 % पहुंच गई है और तो और इससे ज्यादा दुखद क्या होगा 
हिंदुस्तान में ही हिंदुओं को ही अपने त्यौहार मनाने के लिए अदालतों के दरवाजे खटखटाने पड़ रहे हैं 

ममता दीदी को इन फैसलों से कितना फायदा होगा ये तो वक्त पर छोड़ देना चाहिए मगर  उनके ये फैसले बीजेपी के लिए बंगाल में रास्ते खोल सकते हैं, बीजेपी वैसे ही कई सालों से बंगाल में अपनी राजनैतिक जमीन तलाश रही है , हालांकि ममता की पार्टी को मिलने वाले वोटों में कोई कमी नहीं हुई मगर बीजेपी प्रदेश में दूसरे नंबर की पार्टी बनने की ओर बढ़ रही है। अभी अगस्त में हुए सात स्थानीय निकायों के चुनावों में बीजेपी ने बेहतर प्रदर्शन किया, हालांकि इन चुनावों में तृणमूल ने क्लीन स्वीप किया, मगर बीजेपी ज्यादातर जगहों पर दूसरे स्थान पर रही और साथ ही बीजेपी ने तीन नगर निगमों में छह सीटों पर जीत हासिल की, इससे पहले अप्रैल के महीने में हुए उपचुनाव में भी बीजेपी शानदार प्रदर्शन करते हुए 50 हजार से ज्यादा वोट पाकर दूसरे स्थान पर रही थी। पिछले कुछ सालों में ममता बनर्जी ने कुछ ऐसे फैसले लिए हैं, जिसमें यह साफ तौर पर देखने को मिला है कि इन फैसलों से वो अपने अल्पसंख्यक वोट बैंक को साधने की जुगत में हैं.दीदी हम तो यहीं कहेंगे समय रहते संभल जाइए.. आपके इन फैसलों से क्या पता ना राम मिले ना रहीम ..





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