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मन को छूती शब्दों की गहराई

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कभी यूं भी आ मेरीआंख में, कि मेरी नजर को खबर ना हो  मुझे एक रात नवाज दे, मगर उसके बाद सहर ना हो वो बड़ा रहीमो करीम है, मुझे ये सिफ़त भी अता करे तुझे भूलने की दुआ करूं तो मेरी दुआ में असर ना हो मेरे बाजुओं में थकी थकी, अभी महवे ख्वाब है चांदनी ना उठे सितारों की पालकी, अभी आहटों का गुजर ना हो कभी धूप दे, कभी बदलियां, दिलोज़ान से दोनो कुबूल हैं मगर उस नगर में ना कैद कर, जहां ज़िन्दगी का हवा ना हो कभी यूं मिलें कोई मसलेहत, कोई खौफ़ दिल में जरा ना हो मुझे अपनी कोई खबर ना हो, तुझे अपना कोई पता ना हो वो हजार बागों का बाग हो, तेरी बरकतो की बहार से जहां कोई शाख हरी ना हो, जहां कोई फूल खिला ना हो तेरे इख्तियार में क्या नहीं, मुझे इस तरह से नवाज दे यूं दुआयें मेरी कूबूल हों, मेरे दिल में कोई दुआ ना हो कभी हम भी इस के करीब थे, दिलो जान से बढ कर अज़ीज़ थे मगर आज ऐसे मिला है वो, कभी पहले जैसे मिला ना हो कभी दिन की धूप में झूम कर, कभी शब के फ़ूल को चूम कर यूं ही साथ साथ चले सदा, कभी खत्म अपना सफ़र ना हो मेरे पास मेरे हबीब आ, जरा और दिल के करीब आ तुझे धडकन...